Tuesday, March 8, 2011

वो

वो जब रेशमी दुपट्टे से अपने माथे का पसीना पोछती है तो बेचारी पसीने की बूंदों पर तरस आता है जो इस लावान्यमायी रूपसी के स्पर्श-मात्र से वंचित रह जायेंगी!प्रातःकाल में सूर्य की स्वर्णिम किरने जब उसके मुखमंडल पर पड़ती हैं तो एसा लगता हैमानो इस चहरे की अर्चना करने के लिए ही सूर्य रात्रि का वनवास काटकर उदित हुआ है.....

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